Manmohan Singh: जानिए कैसे पाकिस्तान से आकर भारत को बनाया अपनी कर्मभूमि

डीएन ब्यूरो

भारत की विश्व में बदलती तस्वीर के सूत्रधार तत्कालीन पीएम डॉ. मनमोहन का अद्वितीय योगदान रहा। उनकी कथनी और करनी में प्रासंगिकता थी। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

दिवंगत पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन
दिवंगत पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन


नई दिल्ली: देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के जनक और जाने माने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के निधन से अपूर्णीय क्षति हुई है। उनकी कथनी और करनी में प्रासंगिकता थी। वे बोलने में कम और काम पर ज्यादा विश्वास करते थे। 

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार उनकी बनाई नितियों के बदौलत ही आज भारत को बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में अब विश्व स्तर पर बहुत अधिक सम्मान मिल रहा है।

दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह की फेमिली

डॉक्टर सिंह अपने पीछे अपनी पत्नी और 3 बेटियों को छोड़कर चले गए ।

डॉक्टर मनमोहन सिंह की बेटियां

डॉक्टर सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को पंजाब के गाह (अब पाकिस्तान में) नामक गांव में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम गुरमुख सिंह और अमृत कौर था। 

उन्होंने 1947 के बंटवारे का दर्द झेला था। मनमोहन सिंह का परिवार बंटवारे के समय पंजाब के अमृतसर में बस गया था। उनकी माता का नाम अमृत कौर और पिता का नाम गुरुमुख सिंह था।

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उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की थी। बाद में वह उच्च शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गये, जहां से उन्होंने पीएचडी की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी फिल भी किया।

छोटी उम्र में ही अपनी मां को खो देने के बाद, सिंह का पालन-पोषण उनकी नानी ने किया था।

1958 में उन्होंने इतिहास की प्रोफेसर और लेखिका गुरशरण कौर से शादी की थी। उनकी 3 बेटियां (उपिंदर सिंह, दमन सिंह और अमृत सिंह) हैं।

मनमोहन सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर भी काफी नाम कमाया था। वे पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में शिक्षक रहे। इसी बीच वे संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन सचिवालय में सलाहकार भी रहे और 1987 और 1990 में जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे।

1971 में डॉ मनमोहन सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये। इसके तुरन्त बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया।

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इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे।

सिंह की बेटी उपिंदर अशोका विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर हैं। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग की प्रमुख भी रही हैं। उन्होंने 'दिल्ली: एंसिएंट हिस्ट्री' समेत कई किताबें लिखी हैं।

उनकी दूसरी बेटी दमन सेंट स्टीफंस कॉलेज (दिल्ली) और इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट (गुजरात) से स्नातक हैं। वह 'द लास्ट फ्रंटियर: पीपल' और 'फॉरेस्ट इन मिजोरम' की लेखिका हैं।

डॉक्टर सिंह  की तीसरी बेटी अमृत, अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) में एक स्टाफ वकील हैं।










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