पूर्व सीजेआई न्यायमूर्ति वर्मा की मृत्यु के मामले में मेडिकल लापरवाही का दावा खारिज
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) जे एस वर्मा के परिवार द्वारा दायर वह शिकायत खारिज कर दी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उपचार के दौरान मेडिकल लापरवाही के चलते उनकी मृत्यु हुई। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) जे एस वर्मा के परिवार द्वारा दायर वह शिकायत खारिज कर दी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उपचार के दौरान मेडिकल लापरवाही के चलते उनकी मृत्यु हुई।
न्यायमूर्ति वर्मा 27वें प्रधान न्यायाधीश थे, जिन्होंने 25 मार्च 1997 से लेकर 18 जनवरी 1998 (को अपनी सेवानिवृत्ति) तक सेवा दी थी। अप्रैल 2013 में उनकी मृत्यु हुई थी।
बाद में, उन्होंने दिसंबर 2012 की दिल्ली सामूहिक बलात्कार घटना के मद्देनजर महिलाओं के खिलाफ अपराध से निपटने के लिए एक कठोर कानून बनाने को लेकर सरकार द्वारा नियुक्त समिति की अध्यक्षता की थी।
इस घटना का जिक्र अक्सर ‘निर्भया’ मामले के रूप में किया जाता है, जिसमें एक युवती के साथ एक चलती बस में सामूहिक बलात्कार किया गया था।
समिति ने त्वरित सुनवाई के लिए आपराधिक कानून में संशोधन करने और महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटनाओं के साजिशकर्ताओं की सजा बढ़ाने का सुझाव दिया था।
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एनसीडीआरसी पूर्व सीजेआई की पत्नी और दो बेटियों द्वारा दायर उस शिकायत की सुनवाई कर रहा है, जिसमें (उनका उपचार करने वाले) चिकित्सकों एवं अस्पतालों से 10 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति और मुआवजे की मांग की गई थी।
पीठ की अध्यक्षता कर रहे सदस्य एस एम कांतिकार ने कहा कि चिकित्सकों ने मानक मेडिकल प्रोटोकॉल का पालन किया था और ‘‘देखभाल के कर्तव्य में ना तो नाकामी रही, ना ही कोई कमी’’ रही थी।
पीठ में, न्यायिक सदस्य (सेवानिवृत्त) राम सूरत राम मौर्य और तकनीकी सदस्य इंदरजीत सिंह भी हैं।
पीठ ने कहा कि मस्तिष्काघात से मरीज को बचाने के लिए ‘रक्त का थक्का बनने से रोकने वाली’ एक दवा दी गई थी।
इसने कहा कि न्यायमूर्ति (80) को यकृत के काम नहीं करने सहित कई रोग थे और ये कारक उनकी मृत्यु के लिए जिम्मेदार थे। साथ ही, ‘‘न्यायमूर्ति वर्मा की मृत्यु को दूसरे पक्ष के कृत्य से नहीं जोड़ा जा सकता। हमें उनकी मृत्यु पर उनके परिजनों के प्रति गहरी संवेदना है लेकिन यह उत्तरदायी ठहराने का आधार नहीं हो सकता।’’
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पीठ ने कहा, ‘‘शिकायत खारिज की जाती है।’’
आयोग ने उच्चतम न्यायालय के 2021 के एक फैसले का जिक्र किया, जिसके अनुसार उपचार के किसी निर्णय को अन्य पर प्राथमिकता देने संबंधी चिकित्सक का फैसला दुर्भाग्य से गलत साबित हो जाने पर उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि दवा की सलाह देते समय उपचार की अलग-अलग प्रक्रिया हो सकती है।
पीठ ने कहा कि दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने सभी पहलुओं पर दो बार विचार किया तथा पाया कि इलाज कर रहे चिकित्सकों द्वारा किसी भी स्तर पर कोई लापरवाही नहीं हुई।