दिल्ली में वायु प्रदूषण की प्रमुख वजह ‘पराली’ समाधान योग्य समस्या: पुनित रेनजेन

डीएन ब्यूरो

जर्मनी की सॉफ्टवेयर कंपनी एसएपी के डिप्टी-चेयरमैन पुनित रेनजेन का मानना है कि पराली जलाने की वजह से दिल्ली में पैदा हुई वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान हो सकता है। पढ़िए डाईनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

पराली समाधान योग्य समस्या
पराली समाधान योग्य समस्या


वॉशिंगटन: जर्मनी की सॉफ्टवेयर कंपनी एसएपी के डिप्टी-चेयरमैन पुनित रेनजेन का मानना है कि पराली जलाने की वजह से दिल्ली में पैदा हुई वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान हो सकता है। भारतीय अमेरिकी रेनजेन ने हरियाणा और पंजाब में शुरू की गई दो पायलट परियोजनाओं के आधार पर यह दावा किया है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह बहुत गंभीर स्थिति है और इसके कई कारण हैं। लेकिन (दिल्ली में) वायु गुणवत्ता संबंधी समस्याओं में पराली जलाने का योगदान लगभग 25 से 30 प्रतिशत का है। उत्तर भारत विशेषकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने के 80,000 मामले होते हैं। करीब 1.3 करोड़ टन पराली जलाई जाती है और 1.9 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैस वायुमंडल में फैल जाती हैं।’’

शीर्ष भारतीय-अमेरिकी मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) ने पीटीआई-भाषा से कहा कि पराली जलाने की वजह से 1.5 करोड़ समायोजित जीवन वर्ष का नुकसान होता है जो सालाना दो लोगों की मृत्यु के बराबर है।

डेलॉयट के वैश्विक सीईओ (एमेरिटस) ने कहा कि इससे 30 करोड़ डॉलर के राजस्व का नुकसान होता है।

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उन्होंने कहा, ‘‘यह उत्तर भारत, दिल्ली और अन्य जगहों पर वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला एक बड़ा मुद्दा है। और इसका समाधान किया जा सकता है। यह एक समाधान योग्य समस्या है।’’

रेनजेन ने कहा कि पिछले दो वर्षों से वह हरियाणा सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और पराली जलाने के मामलों में कमी आई है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार रेनजेन ने कहा, ‘‘इस साल हम नौ जिलों के 660 गांवों में काम कर रहे हैं। इससे हरियाणा में आग जलाने की घटनाओं में 58 प्रतिशत की कमी आई है। तो, यह एक समाधान योग्य समस्या है। हम पंजाब के पटियाला जिले - में भी काम कर रहे हैं ताकि यह दिखाया जा सके कि हमारा कार्यक्रम इस मुद्दे का समाधान कर सकता है।’’

रेनजेन ने कहा कि यह कंपनी और सरकार के बीच सहयोग का एक प्रयास है। इस कार्यक्रम में कई चीजें शामिल हैं।

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इसमें पहला किसानों के साथ जुड़ाव और संचार है। दूसरा है प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना। हमने एक ऐप ‘कृषि यंत्र साथी’ विकसित किया है, जो किसानों को उपकरण प्रदाताओं के साथ, अंतिम उपयोगकर्ताओं के साथ जोड़ता है। यह ऐप लगभग उबर बुक करने जैसा है।’’

उन्होंने कहा कि हम कॉरपोरेट जगत से कह रहे हैं कि वे कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) कोष का इस्तेमाल इस मामले में करें। इससे हमें अपने प्रयासों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। यह एक समाधान योग्य समस्या है।

उन्होंने कहा कि पहले साल यह परियोजना हरियाणा के करनाल जिले में शुरू की गई। वहां पराली जलाने के मामलों में 65 प्रतिशत की कमी आई है। इस साल इसका विस्तार नौ जिलों के 660 गांवों में किया गया है। इसमें हरियाणा में पराली जलाने वाला करीब 91 प्रतिशत हिस्सा आता है।

रेनजेन ने कहा, ‘‘इस ऐप को लेकर उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली है और डेढ़ लाख किसानों ने इसके जरिये अनुरोध दिया है। इस ऐप पर 3,900 से अधिक उपकरण प्रदाता पंजीकृत है। इसके जरिये करीब 1.7 लाख एकड़ पराली का निपटान हुआ है, जो 58 प्रतिशत है। हम इसे 100 प्रतिशत करना चाहते हैं।










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