Expert Views: गुजरात, हिमाचल के चुनावी नतीजों और उत्तर प्रदेश के उप चुनावों का क्या होगा 2024 पर असर?

डीएन ब्यूरो

गुजरात, हिमाचल प्रदेश विधान सभा समेत उत्तर प्रदेश के उप चुनावों के नतीजे सामने आ चुके हैं। मैनपुरी में ऐतिहासिक जीत से पहले ही यूपी में प्रसपा ने सपा में अपना विलय कर दिया। आखिर इन चुनाव नतीजों को 2024 के लोकसभा चुनाव पर क्या असर होगा। डाइनामाइट न्यूज़ की इस रिपोर्ट में पढ़िये एक्सपर्ट व्यूज़



नई दिल्ली: गुजरात, हिमाचल प्रदेश विधानसभा समेत उत्तर प्रदेश में मैनपुरी लोकसभा सीट और रामपुर व खतौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं। मैनपुरी में जहां डिंपल यादव ने 6 लाख 18 हजार से अधिक वोट जुटाकर भाजपा के खिलाफ ऐतिहासिक जीत दर्ज की है वहीं कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा के गढ़ के ढ़हा दिया है। गुजरात को छोड़ दिया जाए तो इन चुनाव नतीजों ने भाजपा की चिंता को बढ़ा दिया है। इसकी कई वजहें है।

डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट में पढ़िये चुनाव नतीजों को लेकर एक क्विक और एक्सपर्ट व्यू।

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गुरूवार को जब गुजरात, हिमाचल विधानसभा समेत देश के 6 राज्यों में हो रहे उपचुनाव में वोटों की गिनती जारी थी, तो यूपी से एक ऐसी खबर आई, जिसे सुनकर कई पॉलीटिकल पंडित आश्चर्य में रह गये। इस खबर ने यूपी व केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा परेशान किया।

दरअसल, कभी नरम-गरम रिश्तों को लेकर यूपी समेत देश में चर्चाओं के केंद्र में रहे शिवपाल यादव और अखिलेश यादव सियासी तौर पर एक हो गये। शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) का अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (सपा) में विलय हो गया। शिवपाल यादव को अखिलेश यादव ने विधिवत तौर पर सपा का झंडा थमाया और अखिलेश के चाचा शिवपाल ने भी हंसी-खुशी इसका स्वागत किया। इस तस्वीर ने दोनों के बीच पारिवारिक और सियासी मधुरता पर अमिट मुहर लगा दी और साथ ही कई विरोधियों के मन को भी खट्टा कर दिया।

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अब महज डेढ़ से दो साल का वक्त रह गया है, जब देश में आम चुनाव होने है। सभी जानते हैं कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, जहां लोकसभा की सर्वाधिक 80 सीटें हैं। पिछले 2019 के लोकसभा और इसी साल फरवरी-मार्च में हुए विधानसभा चुनाव में सपा और प्रसपा ने अलद-अलग होकर चुनाव लड़ा। बावजूद इसके भी सपा ने शानदार प्रदर्शन किया औऱ यूपी में सबसे बड़ी पार्टी बनकर विपक्ष में बैठी।

कई राजनीतिक विशेषज्ञ और विश्लेषण बताते हैं कि यदि उक्त दो चुनावों में चाचा-भतीजा (प्रसपा—सपा) साथ-साथ होते तो भाजपा की सत्ता की राह इतनी आसान न होती। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव से सपा की कमान अखिलेश यादव के हाथों में आने के बाद दोनों चाचा-भतीजा पहली बार एक हुए हैं। ऐसे में जाहिर है कि सपा-प्रसपा का मिलन 2024 के आम चुनाव में भजपा समेत कई की राहें मुश्किल कर सकती है।    










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