कोर्ट ने दी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी करने वाले 3 लोगों को उम्रकैद की सजा
गुजरात की एक सत्र अदालत ने जासूसी करने और भारत के सैन्य ठिकानों के बारे में गोपनीय जानकारी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ‘इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस’ (आईएसआई) को लीक करने के आरोप में सोमवार को तीन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
अहमदाबाद, 17 जुलाई (भाषा) गुजरात की एक सत्र अदालत ने जासूसी करने और भारत के सैन्य ठिकानों के बारे में गोपनीय जानकारी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ‘इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस’ (आईएसआई) को लीक करने के आरोप में सोमवार को तीन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अंबालाल पटेल की अदालत ने मौत की सजा के लिए अभियोजन पक्ष की अपील खारिज कर दी और कहा कि तीनों व्यक्तियों द्वारा किया गया अपराध “दुर्लभ से दुर्लभतम” श्रेणी में नहीं आता है।
अदालत ने कहा कि तीनों को रोजगार भारत में मिला, लेकिन उनका प्रेम और देशभक्ति पाकिस्तान के लिए थी।
अदालत ने यह भी कहा कि “भारत में रह कर भारत के नागरिक के रूप में पाकिस्तान के लिए जासूसी करने वाले व्यक्ति को स्वेच्छा से देश छोड़ देना चाहिए, या सरकार को उन्हें ढूंढना चाहिए और पाकिस्तान भेज देना चाहिए”।
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अदालत ने 2012 के मामले में सिराजुद्दीन अली फकीर (24), मोहम्मद अयूब (23) और नौशाद अली (23) को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), शासकीय गोपनीयता अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत आपराधिक साजिश और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में दोषी ठहराया।
तीनों को आईपीसी की धारा 121, 121 (ए) और 120 (बी) और आईटी अधिनियम की धारा 66 (एफ) के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, साथ ही शासकीय गोपनीयता अधिनियम की धारा 3 के तहत 14 साल के कठोर कारावास और आईपीसी की धारा 123 (युद्ध छेड़ने की साजिश को छिपाना) के तहत 10 वर्ष कैद की सजा सुनाई। सभी सजाएं एक साथ जारी रहेंगी।
अहमदाबाद शहर की अपराध शाखा ने 14 अक्टूबर 2012 को जमालपुर इलाके के निवासी फकीर और अयूब को अहमदाबाद और गांधीनगर सैन्य छावनी से संबंधित गोपनीय जानकारी आईएसआई को देने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
एक अन्य आरोपी और जोधपुर निवासी नौशाद अली को दो नवंबर 2012 को जोधपुर सैन्य छावनी और बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) मुख्यालय के बारे में जानकारी देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
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जामनगर स्थित एक संदिग्ध आईएसआई एजेंट को भी गिरफ्तार किया गया। लेकिन सबूतों के अभाव में उसे फरवरी 2013 में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 169 के तहत बरी कर दिया गया था। बाद में, वह मामले में सरकारी गवाह बन गया।
आरोपपत्र के अनुसार, फकीर, अयूब और अली ने संदेशों को ईमेल के ‘ड्राफ्ट’ में सेव किया, लेकिन भेजा नहीं। पाकिस्तानी अधिकारी उस ईमेल खाते को खोलकर ‘ड्राफ्ट’ में पड़े ईमेल को पढ़ते थे।
भाषा प्रशांत सुभाष
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