ऐसा जरूरी नहीं है कि बड़ी आबादी वाले देश ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करें, पहले पढ़ें ये रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि इस धारणा को ठीक करने की जरूरत है कि बड़ी आबादी वाले देश ग्रीनहाउस गैस का अधिक उत्सर्जन करते हैं। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि इस धारणा को ठीक करने की जरूरत है कि बड़ी आबादी वाले देश ग्रीनहाउस गैस का अधिक उत्सर्जन करते हैं।

अधिकारी ने साथ ही यह भी कहा कि ग्रीनहाउस गैस का सबसे कम उत्सर्जन करने के बावजूद विकासशील देश इसके सबसे बुरे प्रभावों का सामना करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार भारत 142 करोड़ की आबादी के साथ सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है। हालांकि आधिकारिक आंकड़े के लिए सरकार की ओर से जनगणना अभी की जानी बाकी है।

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डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, यूएनएफपीए के तकनीकी संभाग की निदेशक डॉक्टर जुलिता ओनाबेंजो ने कहा कि एक चीज यह है कि “हम निश्चित रूप से इस धारणा को भी ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं कि चूंकि आपकी आबादी बड़ी है, इसलिए यह जलवायु उत्सर्जन में योगदान दे रही है।”

उन्होंने कहा, “उपभोग का स्वरूप मायने रखता है और हम जानते हैं कि, अधिकांश विकासशील देश ग्रीनहाउस गैस का सबसे कम उत्सर्जन करने के बावजूद सबसे बुरे प्रभावों का सामना करते हैं।”

अधिकारी ने कहा, “हम इस मुद्दे पर और अधिक जागरुकता उत्पन्न करना चाहते हैं।”

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उन्होंने कहा, “आंकड़े से पता चलता है कि सबसे अमीर देशों में से आधे देश दुनिया के 86 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं, भले ही उनकी जनसंख्या स्थिर है या उसमें गिरावट हो रही है।’’

भारत के सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने पर ओनाबेंजो ने कहा कि देश में बड़ी युवा आबादी है, जिसके पास मानव पूंजी के मामले में देने के लिए बहुत कुछ है।

ओनाबेंजो ने कहा, “भारत का अपनी युवा आबादी में निवेश करने से, विशेष रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा, क्षमता निर्माण, कौशल, रोजगार एवं उद्यमिता के क्षेत्र में, वह एक विकसित देश की अपनी आकांक्षा को पूरा करने के लिए मजबूती से कदम बढ़ा सकता है।”










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